जो ये कहते हैं कि साइंस और धर्म का विरोध है
वे या तो साइंस से वह कहलवाते हैं
जो उसने कभी नहीं कहा
या धर्म से
वह कहलवाते हैं
जो उसने कभी नहीं सिखाया
-पोप
अदृश्य नियति के विधान से
हमारी सबसे बड़ी बाधा ही
हमारा सबसे बड़ा योग बन जाती है
-अरविन्दो घोष
हमारी भूल ये है कि हम रचना के पीछे दौड़ते हैं, रचना को अपना बनाना
चाहते हैं ये जानते हुए भी कि ये रचना आज तक न किसी एक की हुई है
और न ही आगे भी होने वाली है । ये धन, दौलत, मकान,दूकान,महल,माल,
रूप-लावण्य, माता-पिता, भाई-बन्धु ...सब तरह की रचना उस रचयिता
का खेल मात्र है । ज़रा सोचिये ..यदि ये रचना किसी की हो पाती तो क्या
हमारे हिस्से में आती ? हमारे पूर्वज क्या अपने साथ नहीं ले गये होते
गठरी बांध के ?
संतमत कहता है रचना के पीछे नहीं, रचयिता के पीछे समय लगाओ
........वो रचयिता जो सदा से हमारा है और जिसे हम से कोई जुदा नहीं
कर सकता । वो रचनाकार सबके पास है और सदा सदा से है
कबीर साहेब फरमाते हैं :
सब घट मेरा साईंयां, सूनी सेज न कोय..........
लिहाज़ा हमें चाहिए कि हम रचना के मोह जाल से निकलें और रचनाकार
के आँचल में विश्राम पायें
-अलबेला खत्री
विपत्ति सह लेने में अचरज नहीं,
अचरज है वैसी हालत में भी शान्त रहने में
- जुन्नुन
प्रस्तुति : अलबेला खत्री
कभी-कभी मैं द्रव्यहीन हो जाता हूँ,
यहाँ तक कि मेरी हीनता बहुत बढ़ जाती है ।
परन्तु अपनी मर्यादा को स्थिर रखते ही
मैं फिर से अमीर हो जाता हूँ
-इब्न-अब्दुल-इल-असदी