क्या यह सोचना पागलपन नहीं है
बिलाशक ऐसे बेशुमार आदमी हैं जो अन्यायी, बेईमान, धोखेबाज़,
जफ़ाकार, फ़रेबी, झूठे और विश्वासघाती बन कर धनवान हुए हैं .
क्या यह सोचना पागलपन नहीं है कि ऐसे आदमी सुखी हो सकते हैं ?
क्या वे इस दौलत का अत्यल्पांश भी आनन्द से उपयोग कर सकते हैं ?
क्या उनका अन्तरात्मा उन्हें रात-दिन
झिड़की, पीड़ा, संताप और यंत्रणा नहीं देता रहता होगा ?
-अज्ञात महापुरूष
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