यही अपना पुरूषार्थ और यही अपना स्वराज्य है
हर आदमी
एक ही निश्चित मार्ग को अंगीकार करने के बजाय
ख़ुद के स्वाभाव अनुसार स्वतंत्र रीति से
नया मार्ग निकाल कर पुरुषोत्तम हो सके
तभी यह कहा जा सकता है कि उसने सच्चा पुरूषार्थ किया ।
ईश्वर में अपने को तदगत करना
व स्वयं उसको आत्मगत करके उसे सर्वत्र अनुभव करना
यही अपना पुरूषार्थ और यही अपना स्वराज्य है ।
- अरविन्द घोष
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