Thursday, November 19, 2009

ये लोग आकाश से दूध दूहना चाह रहे हैं




यदि सेवक सुख चाहे,


भिखारी मान चाहे,


व्यसनी धन चाहे,


व्यभिचारी शुभ गति चाहे


और


लोभी यश चाहे


तो समझ लो कि ये लोग


आकाश से दूध दूहना चाह रहे हैं




-वाल्मीकि




12 comments:

Udan Tashtari said...

आभार इस ज्ञानवर्धक प्रस्तुति का!!

M VERMA said...

ज्ञान की बाते

सुन्दर

Pramendra Pratap Singh said...

इसे ही कहते है हिन्‍दू संस्‍कृति की अमिट पहचान, बहुत अच्‍छी बात आपने बताई

Anonymous said...

Gyan ki baate ujagar karne ke liye abhar.

Urmi said...

आज तो मुझे आपके पोस्ट के दौरान बहुत ही अच्छा ज्ञान प्राप्त हुआ!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब , और साथ में यह भी समझ लीजिये की कलयुग अब चरम पर है !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब , और साथ में यह भी समझ लीजिये की कलयुग अब चरम पर है !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

ज्ञानदायक पोस्ट !!
आभार्!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आप यह उत्तम कार्य कर हे हैं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आप यह उत्तम कार्य कर रहे हैं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आकाश दूहने से कभी-कभी अमृत भी मिल जाता है।

SACCHAI said...

" sundar gyan ki baat "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com