Monday, November 16, 2009

कालकूट विष भी गले का आभूषण बन गया




अनुचित वस्तु


बड़ों को उचित हो जाती है


और


उचित वस्तु


नीचों को दूषित हो जाती है


जैसे


अमृत से राहू की मृत्यु हुई


और


विषपान से भगवान् शंकर का नाम


नीलकंठ पड़ा


अर्थात


कालकूट विष भी


गले का आभूषण बन गया



____________चाणक्य



6 comments:

Unknown said...

बहुत सुन्दर सूक्ति अलबेला जी!

यह भी सही है कि यदि कोई ओछा आदमी बड़ा काम कर ले तो उसकी बड़ाई नहीं होतीः

बड़े काम ओछो करैं तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमन्त को गिरिधर कहै न कोय॥

Anonymous said...

aisa kyu?

Murari Pareek said...

sahi kahaa jachti baat hai!!!

SACCHAI said...

" bahut hi sunder ,gaherai bhari baat ke liye aur aapki unchi soch ke liye aapko hazaro salaam ."

---- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Urmi said...

आपकी सोच को सलाम! बहुत खूब!

Ambarish said...

shandaar panktiyan.. prastut karne ke liye dhanyawaad...