Sunday, July 11, 2010

बदला लेने से मनुष्य अपने शत्रु के समान हो जाता है




जो बदला लेने की सोचता है,

वह अपने ही घाव को हरा रखता है

जो अब तक कभी का भर गया होता

बदला लेने से मनुष्य अपने शत्रु के समान हो जाता है,

लेने से उस से श्रेष्ठ हो जाता है


-बेकन



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2 comments:

Amrendra Nath Tripathi said...

यह बढियां काम कर रहे हैं आप , कविताओं से कम सार्थक नहीं !

समयचक्र said...

बहुत ही सटीक विचार.... आभार