Tuesday, November 17, 2009

दुर्जन और कांटे के लिए दो ही उपाय हैं




दुर्जन
और कांटे के लिए


दो ही उपाय हैं


या तो जूते से मुंह उसका झाड़ना


या त्याग कर,


बच कर निकल जाना




-चाणक्य



8 comments:

शरद कोकास said...

और समयानुसार तथा अपने विवेकानुसार इन दोनो का ही प्रयोग किया जाना चाहिये .. धन्य हैं आप ।

Udan Tashtari said...

सत्य वचन, प्रभु...जो उचित लगे जिस समय!

Unknown said...

अजी पहला उपाय तो आपने कर ही दिया है!

Anonymous said...

aaj kal ki parsthiti me dusara upay hi uchit hai.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एकदम सत्य वचन सर, लेकिन आज के युग में बेहतर यहे है कि जूते से झाड दिया जाए, क्या पता फिर लैब चुबने आ जाए !

Urmi said...

खत्री जी सौ फीसदी सही वचन! जिस जगह पर जिसकी ज़रूरत हो वहीँ पर उसका प्रयोग करना चाहिए !

SACCHAI said...

" saty vachan sir "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

Ambarish said...

aaj pahli baar idhar aana hua mera..
चर्चा हिन्दी चिट्ठों की.. ke aabhaari hain yahan tak pahunchaane ke liye.. shandaar hain sooktiyan.. accha prayas inko ekatrit karne ka..