Friday, December 18, 2009

अनुभूति जितनी सबल है उतनी बुद्धि नहीं




अनुभूति

अपनी सीमा में जितनी सबल है

उतनी बुद्धि नहीं

हमारे स्वयं जलने की

हलकी अनुभूति भी

दूसरे के

राख हो जाने

के ज्ञान से

अधिक स्थायी रहती है


- महादेवी वर्मा


6 comments:

Udan Tashtari said...

आभार इस प्रस्तुति का..

आपको और आभास को देखा मनोको लाफ्टर पर...मजा आया.

Unknown said...

धन्यवाद इस सद्‌विचार के लिये!

निर्मला कपिला said...

सुन्दर प्रस्तुति बधाई

www.SAMWAAD.com said...

महीयसी के भावों को हम तक पहुंचाने का आभार।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

महीयशी महादेवी वर्मा को नमन!

Anonymous said...

महादेवी वर्माji के भावों को हम तक पहुंचाने का आभार।